
सवाल सेहत का


What's Inside
रिपोर्ट के लिए कृपया यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिए. आपने शैलेंद्र का लिखा गीत– “नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है...?” सुना होगा! उसमें एक मिसरा है कि हमसे न छुपाओ हमको भी बताओ..आने वाली दुनिया कैसी होगी हमें भी समझाओं..बच्चे जवाब देते हैं— “आने वाली दुनिया में सबके सिर पे ताज होगा...न भूखों की भीड़ होगी न दुखों का राज होगा..बदलेगा ज़माना ये सितारों पे लिखा है”। लेकिन, इस गीत को लिखे करीब 70 साल होने को आए हैं पर स्थिति में बड़ा फेरबदल नहीं हुआ है। इसकी गवाही यूनिसेफ की यह रिपोर्ट भी दे रही है। कोविड महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया है। वर्ष 2010 में जीरो-डोज बच्चों की संख्या 15.4 मिलियन थी जो कि कोविड के कारण बढ़कर वर्ष 2021 में 18.2 मिलियन हो जाती है। भारत में कोविड महामारी से पहले जीरो-डोज बच्चों की संख्या 13 लाख थी जो कि 2021 में 108 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 27 लाख हो जाती है
तस्वीर में- महामारी के कारण टीकाकरण की रफ़्तार हुई धीमी. रिपोर्ट की मुख्य बातें—
टीकाकरण का महत्त्व
टीकाकरण के रास्ते में कोविड बना रोड़ा यूनिसेफ के अनुसार, वर्ष 2019 से 2021 के बीच लगभग 67 मिलियन बच्चे पूरी तरह से या आंशिक रूप से टीकाकरण से वंचित रहे। 48 मिलियन पूरी तरह से वंचना के शिकार हुए। तसवीर में— जिन्हें वेक्सिन डोज नहीं मिला।
कम साक्षर या असाक्षर महिलाओं के बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। 23.5 फिसद जीरो-डोज वाले बच्चों की माताएँ असाक्षर थीं.
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