भुखमरी-एक आकलन
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एफएओ, डब्ल्यूएफपी,आएफएडी द्वारा प्रस्तुत द स्टेट ऑव फूड इन्सिक्यूरिटी इन द वर्ल्ड 2012 नामक दस्तावेज के अनुसार-, http://www.fao.org/docrep/016/i3027e/i3027e.pdf http://www.fao.org/docrep/016/i2845e/i2845e00.pdf:
•नए आकलनों के अनुसार खाद्य-पदार्थ की कीमतों और आर्थिक संकट के वर्षो (2007–10) में भुखमरी की व्यापकता उतनी गंभीर नहीं थी जितना पहले के अनुमानों में कहा गया था।सकल घरेलू उत्पाद से संबंधित नए आकलनों के अनुसार साल 2008-09 की आर्थिक महामंदी के समय कई विकासशील देशों में जीडीपी की बढ़त बहुत कम प्रभावित हुई। चीन, भारत और इंडोनेशिया(तीन बड़े विकासशील देश) में घरेलू बाजार में खाद्य-पदार्थों की कीमतों में मामूली वृद्धि हुई।
•साल 1990-1992 की अवधि में भारत में पोषणगत कमी झेल रहे लोगों की संख्या तकरीबन 24 करोड़ थी, साल 1999-2001 की अवधि में यह संख्या 22 करोड़ 40 लाख थी। साल 2004-06 के बीच पोषणगत कमी के शिकार लोगों की संख्या 23 करोड़ अस्सी लाख थी जबकि स3ल 2007-09 में 22 करोड़ 70 लाख और साल 2010-12 की अवधि में ऐसे लोगों की संख्या 21 करोड़ 70 लाख थी।
•भारत की कुल आबादी में पोषणगत कमी के शिकार लोगों की तादाद साल 1990-92 में 26.9 फीसद, साल 1999-2001 में 21.3 फीसद, साल 2004-06 में 20.9 फीसद, साल 2007-09 में 19.0 फीसद तथा साल 2010-12 में 17.5 फीसद थी।
•भारत में आयरन और आयोडिन की कमी से होने वाले कुपोषण के कारण सालाना जीडीपी के 2.95 फीसद का नुकसान होता है।
•साल 2008 में भारत में कुल कृषियोग्य भूमि का 41.9 फीसद हिस्सा सिंचाई की सुविधा से युक्त था जबकि साल 2004 में ऐसी भूमि कुल कृषियोग्य भूमि का 40.1 फीसद थी।
•भारत में खाद्यान्न निर्भरता अनुपात[ इसकी गणना के लिए खाद्यान्न-आयात में {( खाद्यान्न का कुल उत्पादन और कुल आयात का योग खाद्यान्न निर्यात को घटाया जाता है }] साल 2008 में 0.5 फीसद थी जबकि साल 2007 में 1.5 फीसद।
•शहरों और नगरों के नजदीक पड़ने वाले भारतीय गांवों का रिकार्ड गरीबी घटाने के मामले में तुलनात्मक रुप से बेहतर है।
•बांग्लादेश में सरकार भारत और पाकिस्तान की तुलना में स्वास्थ्य के मद में दोगुना ज्यादा खर्च करती है।.
•विश्वस्तर पर तकरीबन 87 करोड़ लोग साल 2010-12 में भोजन से हासिल होने वाली ऊर्जा की कमी के शिकार थे। यह तादाद विश्व की आबादी का 12.5 फीसद है यानी विश्व में हर आठ व्यक्ति में एक व्यक्ति भोजन से हासिल होने वाली ऊर्जा की कमी का शिकार है। इस तादाद में से 85 करोड़ 20 लाख लोग विकासशील देश में रहते हैं। विकासशील देशों में पोषणगत कमी के शिकार लोगों की संख्या ऐसे देशों की कुल आबादी का 14.9 फीसद है।.
•साल 1990-92 से साल 2010-12 के बीत विश्व में भुखमरी झेल रहे लोगों की संख्या में 13 करोड़ 20 लाख की कमी आई यानि विश्व में भुखमरी झेल रहे लोगों की संख्या 18.6 फीसद से घटकर 12.5 फीसद हो गई जबकि विकासशील देशों में यह संख्या घटकर 23.2 फीसद से 14.9 फीसद पर पहुंची है।
• पोषणगत कमी के शिकार लोगों की संख्या में सर्वाधिक कमी दक्षिणी-पूर्वी एशिया(13.4 फीसद से घटकर 7.5 फीसद) और पूर्वी एशिया( 26.1 फीसद से घटकर 19.2 फीसद) के देशों में आई है। लैटिन अमेरिकी देशों में पोषणगत कमी के शिकार लोगों की संख्या 6.5 फीसद से घटकर 5.6 फीसद पर पहुंची है लेकिन दक्षिणी एशिया में पोषणगत कमी झेल रहे लोगों की संख्या 32.7 फीसद से बढ़कर 35.0 फीसद पर पहुंची है।
• सारे विकासशील देशों को एकसाथ मिलाकर देखें तो भोजन की कमी के शिकार लोगों की संख्या साल 1990-2010 के बीच 23.2 फीसदी से घटकर 14.9 फीसद पर आई है जबकि इस अवधि में गरीबों की तादाद 47.5 फीसदी से घटकर 22.4 फीसदी पर पहुंची और बाल मृत्यु-दर 9.5 फीसदी से घटकर 6.1 फीसदी पर।
• भुखमरी और कुपोषण को घटाने में कृषि की वृद्धि का प्रभावकारी योगदान रहा है। ज्यादातर गरीबजन अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। |
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