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कटी हुई अँगुलियाँ और चमचमाती कारें


क्या आप जानते हैं कि आपकी कार बनाते समय कितने लोगों की अँगुलियाँ कट गई थी ? आपने जिस भी कंपनी से कार खरीदी है, क्या वहाँ सुरक्षा मानकों की पालना की जा रही थी ? मजदूरों की सुरक्षा के लिए कौनसे कदम उठाएँ गए हैं ? क्या वो पर्याप्त हैं ? इसी तरह के सवाल का ज़वाब तलाशती है– ‘सेफ इन इंडिया’ की रिपोर्ट – सेफ्टी–नीति 2023 और CRUSHED 2022. ऑटो–मोबाइल क्षेत्र, भारतीय अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख स्तम्भ है। हाल के दिनों में भारत के ऑटो–मोबाइल उद्योग ने उल्लेखनीय वृद्धि हासिल की है; जिसके कारण चर्चा का विषय भी बना हुआ है। गौरतलब है कि सन् 1992–93 में ऑटो–मोबाइल क्षेत्र की, भारत की कुल जीडीपी में 2.77 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी जो कि बढ़कर वर्ष 2022–23 में 7.1 प्रतिशत हो गई है। भारत के कुल निर्यात में ऑटो–मोबाइल क्षेत्र 4.7 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। वहीं करीब 37 मिलियन लोगों की रोज़ी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र से जुड़ी हुई है। भारत, आज विश्व में ट्रैक्टर, टू–व्हीलर और सवारी गाड़ियों का सबसे बड़ा निर्माता है। वहीं दुपहिया वाहनों के मामले के चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है। अगर बात करें कारों के विनिर्माण की तो भारत चौथे स्थान पर आता है। भारत में बनी ये कारें सिर्फ हिंदुस्तान की ज़मीं तक ही नहीं बल्कि दुनिया–भर की सड़कों पर दौड़ रही हैं। भारत के लिए यह गर्व की बात है। वर्ष 2020–21 में भारत से 4,04,397 सवारी गाड़ियों का निर्यात किया गया था जो कि 61 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ वर्ष 2022–23 में 6,62,891 हो जाता है। भारत की ओर से निर्यात किये गए वाहनों की संख्या. वहीं भारत की घरेलू बाजार में हुई बिक्री के आँकड़ों को देखें तो वर्ष 2021–22 में 27,11,457 सवारी गाड़ियों की बिक्री हुई थी जो कि 2022–23 में बढ़कर 38,90,114 हो जाती है। यह बात सही है कि सड़कों पर सरपट दौड़ते इन वाहन के विनिर्माण से मजदूरों के लिए रोज़गार के अवसर सृजित होते हैं; लेकिन, कहानी इन आँकड़ों घटाटोप से पूरी नहीं हो जाती है। कहानी का एक पहलू और है, उस पर ध्यान देना भी उतना ही ज़रूरी है। इन वाहनों, खासकर कार को बनाने के लिए हजारों अंगों (पार्ट्स) की ज़रूरत पड़ती है। और उन्हें बनाने के लिए कंपनियाँ तरह–तरह की मशीनों का सहयोग लेती हैं ताकि उत्पादकता में तेजी आ जाएँ। जब इन मशीनों का इस्तेमाल कोई मजदूर करता है तब उसे अपनी सुरक्षा के लिए कई तरह के सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करना होता है। लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आए साल हज़ारों मजदूरों की अँगुलियाँ, हथेलियाँ और कभी-कभी तो पूरा का पुरा हाथ मशीन की चपेट में आ जाता है। अगर आप पूछते है क्यों ? तो उसका साधारण सा उत्तर है- मजदूरों के पास सुरक्षा उपकरणों का अभाव। क्या कहते हैं आँकड़ें सेफ इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में, राष्ट्रीय स्तर पर, ऑटो–मोबाइल इंडस्ट्री में करीब 10,855 मजदूरों को चोट आई थी। वहीं वर्ष 2022 के संदर्भ में यह आँकड़ा तीन तिमाहियों में ही छू लिया है। ऊपर दिये गए चित्र में चोटिल हुए मजदूरों की संख्या को दर्शाया है. प्रसिद्ध समाजशास्त्री एरिक फ्रॉम ने अपने एक निबंध में लिखा था कि “पूंजीवादी व्यवस्था, पूंजी को श्रमिक के जीवन से ऊपर रखती है।” चोटिल हुए मजदूरों में से 50 प्रतिशत से अधिक मजदूरों का कहना था कि उनसे 12 घंटों से अधिक समय तक काम करवाया जाता था। वहीं अतिरिक्त समय (ओवर टाइम) में करवाएँ गए काम का कोई भुगतान नहीं किया गया। चोटिल मजदूरों के बीच समानताएँ गौर करने वाली बात यह है कि चोटिल हुए मजदूरों के बीच कई तरह की समानताएँ देखने को मिली— (गुडगाँव, फ़रीदाबाद और हरियाणा में.)
ऐसे ही रुझान पुणे (महाराष्ट्र) में देखने को मिले- नीचे दिए गए चित्र को देखें- पुणे में प्रवासी मजदूरों का अनुपात कम हो जाता है पर आधे से अधिक चोटिल मजदूर प्रवासी थे। वहीं पुणे में संविदा मजदूरों का अनुपात बढ़ जाता है। कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) नियम यह कहता है कि कर्मचारी को नौकरी के पहले दिन ही ESIC पहचान–पत्र दिया जाना चाहिए ताकि किसी दुर्घटना के होने पर उसे सरकारी बीमा योजना का लाभ मिल सके।
लेकिन, रिपोर्ट कहती है कि तीन चौथाई मजदूरों को ESIC पहचान–पत्र चोट लगने के बाद दिये गए। हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों राज्यों के आँकड़ों को देखें तो घायल मजदूरों को पहले निजी अस्पताल में ले जाया गया; बाद में ESIC अस्पतालों में ले जाया गया। जिन मजदूरों को दुर्घटना के बाद ESIC e–पहचान पत्र मिला, उनमें अंगुलियों के क्षतिग्रस्त होने की गंभीरता अधिक पाई गई।
असुरक्षित कार्यदशाएँ
एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2026 तक ऑटो–मोबाइल सेक्टर में रोजगार के 100 मिलियन अवसर सृजित हो जाएँगे। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि मजदूरों के लिए बेहतर कार्यदशाओं को तैयार करने के लिए ज़रूरी कदम उठाएँ जाएँ। व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य नीति (OHS) कार्य परिसर में मजदूरों के लिए काम करने की उचित दशाओं का होना पहली शर्त है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए कंपनियों ने अपनी OHS नीतियाँ बनाई हैं। लेकिन, सवाल यह उठता है कि धरातल पर इनकी मौजूदगी किस तरह की है ? क्या इन नीतियों को अपनाने से मजदूरों के जीवन में कोई बदलाव आया ? ऑटो–मोबाइल कंपनियाँ अपने उत्पाद के लिए सभी पार्ट्स (अंगों) का निर्माण स्वयं नहीं करती हैं। एक कार के पार्ट्स अलग–अलग जगहों पर तैयार होते हैं। अंत में सभी को एक जगह पर लाकर जोड़ दिया जाता है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि यह नीतियाँ एक कार को बनाने वाले कितने मजदूरों की अँगुलियों को सुरक्षा प्रदान करती हैं। अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में भारत के मजदूरों की उत्पादकता स्थान (प्रोडक्टिविटी रैंक) में गिरावट दर्ज की है। वर्ष 2021 में भारत की रैंक 115वीं थी जो कि घटकर 2023 में 132 वीं हो गई है।
सन्दर्भ-- Economic Survey 2022-23, please click here. Society of Indian Automobile Manufacturers, please click here. भारत की ओर से किए जा रहे निर्यात से सम्बंधित आँकड़ों के लिए कृपया यहाँ, यहाँ और यहाँ क्लिक कीजिये. India Brand Equity Foundation, Please click here. SafetyNiti 2023- Please click here. |
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