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प्रवासी मजदूरों के पास न खाना बचा है और न पैसे बचे हैं! घर पहुंचने के लिए तकलीफें उठाईं सो अलग..

इस महामारी काल में 5 जून को, विभिन्न सामाजिक संगठनों, शिक्षाविदों और विश्वविद्यालयों के छात्रों के एक स्वयंसेवक समूह ‘स्ट्रान्डेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क’ ने अपनी तीसरी रिपोर्टटू लीव या नॉट टू लीव? लॉकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स एंड देयर जर्नीज् होम’ जारी की. इस नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन प्रवासी मजदूरों ने स्वान के स्वयंसेवकों को सहायता के लिए फोन किया (15 मई और 1 जून के बीच 821 इमरजेंसी कॉल प्राप्त हुए), उनमें से लगभग 80% प्रवासी मजदूरों (5,911 में से) को सरकार द्वारा बांटा जाने वाला राशन नहीं मिल सका.

फंसे हुए प्रवासियों को मई के दूसरे पखवाड़े में उसी तरह के खाद्य संकट यानी भूखमरी का सामना करना पड़ा जोकि वे COVID-19 लॉकडाउन के पहले चरण के दौरान यानि 25 मार्च से 14 अप्रैल के दौरान भोग रहे थे. ऐसा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) जैसी विभिन्न योजनाओं और आत्मानिभार भारत जैसे राहत उपायों/पैकेजों की घोषणा के बावजूद होता रहा.

चार्ट 1: उन लोगों का प्रतिशत, जिनको सरकार द्वारा बांटा गया राशन प्राप्त नहीं हुआ है

स्रोत: स्ट्रान्डेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क’ द्वारा तैयार ‘टू लीव या नॉट टू लीव? लॉकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स एंड देयर जर्नीज् होम’ रिपोर्ट, एक्सेस करने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.

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चार्ट -1 में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि जिन प्रवासी मजदूरों ने स्वान के स्वयंसेवकों को सहायता के लिए फोन किया (15 मई और 30 मई के बीच), उनमें से लगभग 80% प्रवासी मजदूरों को सरकार द्वारा बांटा जाने वाला राशन नहीं मिल सका.

पहले दो स्वान रिपोर्टों में पाया गया था कि प्रवासी मजदूर सरकार द्वारा घोषित राहत पैकेजों का लाभ (उपयोग) ले पाने करने में असमर्थ थे. पहले प्रकाशित की गई उन दो रिपोर्टों में, इस बात पर ध्यान आकर्षित किया कि स्वान स्वयंसेवकों तक पहुंचने वाले 82 प्रतिशत से अधिक प्रवासियों को कोई सरकारी राशन नहीं मिला था और लगभग 70 प्रतिशत को किसी भी तरह का पका हुआ भोजन नहीं मिला था. लॉकडाउन का दूसरा चरण आते-आते जिन प्रवासियों ने संपर्क किया उनमें लगभग दो-तिहाई प्रवासियों के पास 100 रुपये से भी कम रुपये बचे थे.

यह गौरतलब है कि स्वान (SWAN) की पहली रिपोर्ट '21 डेज़ एंड काउंटिंग: COVID-19 लॉकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स, और इनएडैक्वेसी ऑफ वेलफेयर मीजर्स इन इंडिया' (14 अप्रैल, 2020 को जारी) की अवधि 27 मार्च, 2020 से 13 अप्रैल, 2020 तक थी, जोकि कमोबेश COVID-19 लॉकडाउन के पहले चरण यानी 25 मार्च से 14 अप्रैल तक के समयावधि थी. पहली स्वान रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें.

SWAN की दूसरी रिपोर्ट '32 डेज़ एंड काउंटिंग: COVID-19 लॉकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स, एंड इनएडैक्वेसी ऑफ वेलफेयर मीजर्स इन इंडिया '(पहली मई, 2020 को जारी) की अवधि 14 अप्रैल, 2020 से लेकर 26 अप्रैल, 2020 तक थी. यह अवधि लगभग दूसरे चरण के लॉकडाउन के साथ मेल खाती है अर्थात 15 अप्रैल से 3 मई तक. दूसरी स्वान (SWAN) रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें.

यह ध्यानार्थ है कि नेटवर्क (http://strandedworkers.in/) राशन के लिए श्रमिकों को संगठनों और सरकार से जोड़कर जोनल हेल्पलाइन के रूप में 27 मार्च से राहत कार्य में सक्रिय रूप से शामिल है. इसके स्वयंसेवकों ने देश भर के लगभग 34,000 श्रमिकों के साथ बातचीत की है. चूंकि कई श्रमिकों को बुनियादी आवश्यकताओं के लिए नकदी की सख्त जरूरत होती है, इसलिए स्वान ने ऐसे व्यक्तियों से वित्तीय सहायता ली है, जिन्होंने सहायता राशि सीधे जरूरतमंद श्रमिकों के खातों में भेजी है. आज तक, स्वान (SWAN) की सहायता से सीधे श्रमिकों के खातों में 50 लाख रुपये से अधिक रकम भेजी गई है.

स्वान की तीसरी रिपोर्ट के अन्य प्रमुख निष्कर्ष

काफी हद तक नवीनतम रिपोर्ट लॉकडाउन के चौथे चरण यानी 18 मई से 31 मई के दौरान प्रवासियों की स्थिति को उजागर करती है. रिपोर्ट में यह पाया गया है कि 15 मई के बाद से लगभग तीन-चौथाई लोगों (यानी 76 प्रतिशत) ने स्वान स्वयंसेवकों से फोन कर सहायता मांगी, जिनके पास 300 रुपये से कम धनराशि बची थी, जबकि 72 प्रतिशत लोगों के पास 200 रुपये से कम पैसे बचे थे. लगभग 63 प्रतिशत लोगों के पास 100 रुपये से कम रुपये बचे थे.

मोटे तौर पर इमरजेंसी (820 लोग) में मदद की गुहार लगाने वाले 57 प्रतिशत लोगों के पास कोई पैसा नहीं बचा था और राशन न होने की वजह से कई देर से भूखे थे. यह आंकड़े लॉकडाउन के दूसरे चरण की तुलना में 7 प्रतिशत अंक की वृद्धि का संकेत देते हैं.

स्वान स्वयंसेवकों ने आईआईटी-दिल्ली द्वारा बनाई गई एक सामाजिक तकनीक कंपनी ग्राम वाणी (https://gramvaani.org/) का सहयोग भी लिया और इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस (आईवीआर) का उपयोग करते हुए 1,963 श्रमिकों (पूछे गए सवालों के जवाब) से डेटा एकत्र करने में मदद हासिल हुई.

चार्ट 2: मेजबान राज्यों में फंसे हुए श्रमिक, गृह राज्यों में लौट आए या रास्ते में फंसे श्रमिक.

स्रोत: स्ट्रान्डेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क’ द्वारा तैयार ‘टू लीव या नॉट टू लीव? लॉकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स एंड देयर जर्नीज् होम’ रिपोर्ट, एक्सेस करने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.

इस आईवीआर-आधारित बातचीत के दौरान पाया गया कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद से दो-तिहाई (1,963) प्रवासी अभी भी उसी स्थान पर अटके हुए थे, जबकि केवल 33 प्रतिशत ही घरों के लिए रवाना हो पाए थे. चार्ट -2 से पता चलता है कि झारखंड के प्रवासी श्रमिक (यानी लगभग 54 प्रतिशत) सबसे अधिक अनुपात में घर पहुंचे हैं.

जो लोग फंस गए थे, उनमें से 55 प्रतिशत (1,166 में से) तुरंत अपने घरों/मूल स्थान पर लौटने के लिए बेसब्र थे. जब इस लॉकडाउन के दौरान अप्रैल के अंत में श्रमिकों के एक ही सेट से यह सवाल पूछा गया था, तो केवल एक तिहाई मजदूर ही लॉकडाउन के दूसरे चरण के समाप्त होने के तुरंत बाद अपने घर लौटना चाहते थे. यह आंकड़ा सरकार के उस दावे को खारिज करता है जिसमें सरकार कह रही थी कि अधिकांश प्रवासियों की घर वापसी हो गई है और श्रमिक स्पेशल रेलगाड़ियों की अब कोई जरूरत नहीं है.

जो प्रवासी अभी भी काम की तलाश में पलायन वाली जगह पर अटके थे, उनमें से लगभग तीन-चौथाई यानी 75 प्रतिशत (1,124) के पास लॉकडाउन के कारण कोई रोजगार नहीं था. इसलिए, प्रवासियों की 'स्वदेशी भावनाओं' के बजाय घर/मूल स्थान पर वापस जाने की इच्छा के पीछे ठोस आर्थिक कारण थे.

लगभग 44 प्रतिशत प्रवासी बसों के माध्यम से और 39 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक स्पेशल रेलगाड़ियों की मदद से अपने घरों तक पहुंचने में सफल रहे. लगभग 11 प्रतिशत प्रवासियों ने ट्रक, लॉरी और परिवहन के अन्य ऐसे साधनों में यात्रा की, जबकि 6 प्रतिशत प्रवासी अपना जीवन खतरे में डालकर पैदल ही अपने घरों तक पहुंचे.

सुप्रीम कोर्ट ने 28 मई को एक अंतरिम आदेश जारी किया था कि प्रवासियों को यात्रा के लिए भुगतान नहीं करना पड़ेगा. हालांकि, नवीनतम स्वान की रिपोर्ट के अनुसार, यह आदेश बहुत देर बाद आया. घर लौटने वाले 85 प्रतिशत से अधिक प्रवासी कामगारों को अपनी यात्रा के लिए खर्च खुद ही उठाना पड़ा था. घर वापस लौटने वाले प्रवासियों में से दो-तिहाई से अधिक प्रवासी मजदूरों ने यात्रा के लिए 1,000 रुपये से अधिक खर्च किए हैं.

चार्ट 3: ऋण लेने वाले प्रवासी

स्रोत: स्ट्रान्डेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क’ द्वारा तैयार ‘टू लीव या नॉट टू लीव? लॉकडाउन, माइग्रेंट वर्कर्स एंड देयर जर्नीज् होम’ रिपोर्ट, एक्सेस करने के लिए कृपया यहां क्लिक करें.

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1,559 प्रवासी श्रमिकों में से, 90 प्रतिशत से अधिक ने लॉकडाउन अवधि के दौरान रुपये उधारी लिए थे और लगभग 15 प्रतिशत ने 8,000 रुपए से अधिक रुपये उधारी लिए थे. कृपया चार्ट -3 देखें.

नवीनतम रिपोर्ट में प्रवासियों की विस्तृत गवाही भी दर्ज की गई है जिसमें प्रवासियों नें घर लौटते वक्त हुई परेशानियां और अपना दुख-दर्द सुनाया है.

 

References:

To Leave or Not to Leave? Lockdown, Migrant Workers, and Their Journeys Home, prepared by Stranded Workers Action Network (SWAN), released on 5th June, 2020, please click here to access

To Leave or Not to Leave: Lockdown, Migrant Workers, and Their Journeys Home: Third Report by Stranded Workers Action Network (SWAN), Center for Contemporary South Asia, Watson International & Public Affairs, Brown University, June 8th, 2020, please click here to access

32 Days and Counting: COVID-19 Lockdown, Migrant Workers, and the Inadequacy of Welfare Measures in India, prepared by Stranded Workers Action Network (SWAN), released on 1st May, 2020, please click here to access

32 Days and Counting: Second Report by the SWAN on Migrant Worker Distress and the (Extended) Lockdown, Center for Contemporary South Asia, Watson International & Public Affairs, Brown University, May 1st, 2020, please click here to access 

21 Days and Counting: COVID-19 Lockdown, Migrant Workers, and the Inadequacy of Welfare Measures in India, prepared by Stranded Workers Action Network (SWAN), released on 14 April, 2020, please click here and here to access

Two-thirds of migrant workers still don’t have access to government ration: Survey -Shagun Kapil, Down to Earth, 5 June, 2020, please click here to access

 

Image Coutesy: To Leave or Not to Leave? Lockdown, Migrant Workers, and Their Journeys Home, prepared by Stranded Workers Action Network (SWAN), released on June 5th, 2020