बेरोजगारी दर कैसे 6.1 प्रतिशत से भी ज्यादा हो सकती है, पढ़िए इस न्यूज एलर्ट में

बेरोजगारी दर कैसे 6.1 प्रतिशत से भी ज्यादा हो सकती है, पढ़िए इस न्यूज एलर्ट में

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published Published on Jun 17, 2019   modified Modified on Jun 17, 2019

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी श्रमबल सर्वेक्षण के नये आंकड़ों में बेरोजगारी दर के साल 2017-18 में 6.1 प्रतिशत होने की बात कही गई है लेकिन मंत्रालय के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित एक शोध-आलेख में आशंका जतायी गई है कि बेरोजगारी की मार झेल रहे लोगों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है.(आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण की मूल रिपोर्ट के लिए इस लिंक पर क्लिक करें)

 

‘सर्जिकल स्ट्राइक ऑन एम्पलॉयमेंट: द रिकार्ड ऑफ द फर्स्ट मोदी गवर्नमेंट' शीर्षक इस लेख में कहा में कहा गया है कि ‘बेरोजगारी दर' की मौजूदा परिभाषा की कुछ सीमाएं हैं और इन सीमाओं के कारण बेरोजगारों की एक बड़ी तादाद की गिनती नहीं हो पाती.

 

शोध-आलेख के लेखकों (विकास रावल एवं प्राची बंसल) का तर्क है कि उपलब्ध कुल श्रमबल में बेरोजगार लोगों के अनुपात को बेरोजगारी दर मानने का चलन है और जितने लोग सक्रिय रुप से रोजगार की तलाश में होते हैं उनकी संख्या को श्रमबल कहा जाता है. श्रमबल की इस परिभाषा के दायरे में वैसे लोग नहीं जिन्होंने रोजगार मौजूद ना होने की स्थिति को भांपकर या रोजगार खोजने में आ रहे खर्चे का बोझ ना उठा सकने के कारण काम तलाशना बंद कर दिया हो. ऐसे लोगों को बेरोजगारी दर के आकलन में ‘रोजगार-विमुख' मानकर गिनती नहीं की जाती.

 

बेरोजगारी दर की परिभाषा से जुड़ी सीमाओं को देखते हुए आलेख में तर्क दिया गया है कि बेरोजगारों की वास्तविक संख्या के आकलन के लिए कार्ययोग्य आयु(15 साल से 59 साल) के लोगों की कार्य-प्रतिभागिता दर (डब्ल्यूपीआर) को संज्ञान में लेना उपयोगी साबित हो सकता है. डब्ल्यूपीआर रोजगार में लगे लोगों के वास्तविक अनुपात का सूचक है. इसमें उन लोगों की गिनती नहीं की जाती जिन्होंने यह मानकर रोजगार की तलाश करना छोड़ दिया है कि उन्हें काम नहीं मिल पायेगा या फिर किन्हीं अन्य जरुरतों(जैसे घरेलू काम अथवा अध्ययन-कार्य) के कारण रोजगार कर पाने में असमर्थ हैं. ( ध्यान रहे, ग्रामीण इलाकों के कार्य-योग्य उम्र के लोगों में घरेलू काम अथवा अध्ययन-कार्य के कारण रोजगार कर पाने में असमर्थ लोगों की तादाद कम होगी). शोध-आलेख के लेखकों का मानना है कि डब्ल्यूपीआर में कमी का अर्थ है रोजगार के अवसरों का कम होना.

 

आकलन के इस वैकल्पिक तरीके से शोध-आलेख में श्रम-मंत्रालय के नये आंकड़ों का राज्यवार विश्लेषण कई तालिकाओं के सहारे प्रस्तुत किया है.(इन तालिकाओं को आप यहां क्लिक करके देख सकते हैं). तालिकाओं के आधार पर शोध-आलेख में कुछ चौंकाऊ निष्कर्ष दिये गये हैं, जिन्हें पाठकों की सुविधा के लिए नीचे संक्षेप में लिखा जा रहा है:

 

--- साल 2017-18 में ग्रामीण क्षेत्रों के कार्य-योग्य आयु के 25 फीसद पुरुष और 75 फीसद महिलाओं को रोजगार हासिल नहीं था.

 

--- साल 2011-12 में रोजगार की दशा पर केंद्रित एनएसएसओ का पिछला सर्वेक्षण हुआ था और साल 2017-18 में हालिया पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे. इस अवधि के बीच बेरोजगारी की दशा में नाटकीय बदलाव आये हैं.

 

--- अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो उक्त अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों की कार्य-योग्य आयु वाली आबादी में रोजगार-प्राप्त पुरुषों की संख्या में 6.8 प्रतिशत की कमी आयी है जबकि कार्य-योग्य उम्र की ग्रामीण महिला आबादी में रोजगार प्राप्त महिलाओं की संख्या 11.7 प्रतिशत घटी है.

 

--- शहरी क्षेत्रों में कार्य योग्य आबादी में रोजगार प्राप्त पुरुषों की संख्या उक्त अवधि(2011-12 से 2017-18 के बीच) में 4.2 प्रतिशत घटी है जबकि महिलाओं में 1.2 प्रतिशत.

 

--- कार्य प्रतिभागिता दर में गिरावट का रुझान नये आंकड़ों में तकरीबन सभी बड़े राज्यों में नजर आ रहा है और यह रुझान ग्रामीण तथा शहरी एवं स्त्री तथा पुरुष कामगारों पर समान रुप से लागू होता है.

 

---- देश की सर्वाधिक आबादी वाले 22 राज्यों में कोई भी राज्य ऐसा नहीं जहां कार्य-प्रतिभागिता दर में कमी नहीं आयी हो.

 

--- कार्य-योग्य आयु की ग्रामीण महिला आबादी में बेरोजगारों की तादाद में इजाफा विशेष रुप से उल्लेखनीय है. अखिल भारतीय स्तर पर देखें तो साल 2017-18 में कार्य-योग्य उम्र की मात्र एक चौथाई महिलाओं को रोजगार हासिल था.

 

---- राज्य स्तर पर यह आंकड़ा और भी ज्यादा खराब स्थिति के संकेत करता है. मिसाल के लिए, साल 2017-18 में बिहार में मात्र 4 फीसद ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ. उत्तरप्रदेश और पंजाब में 15 प्रतिशत से भी कम ग्रामीण महिलाओं(कार्य-योग्य आयु की) को रोजगार हासिल हुआ.

 

--- देश की सर्वाधिक आबादी वाले 22 राज्यों में केवल तीन राज्य--- आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा हिमाचल प्रदेश ही ऐसे हैं जहां साल 2017-18 में कार्य-योग्य आयु की 50 फीसद से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ. साल 2011-12 में 22 राज्यों में से 7 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण महिलाओं को रोजगार हासिल हुआ था.

 

---- साल 2011-12 से 2017-18 के बीच कृषि-क्षेत्र में रोजगार पाने वाले पुरुषों की तादाद में 4 प्रतिशत तथा इस क्षेत्र में रोजगार पाने वाली महिलाओं की तादाद में 6 प्रतिशत की कमी आयी है. साल 2017-18 में कृषि-क्षेत्र में 28 प्रतिशत ग्रामीण पुरुषों तथा 13 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं को कृषि-क्षेत्र में रोजगार हासिल हुआ.

 

--- उक्त अवधि में निर्माण-कार्य(कंस्ट्रक्शन) के क्षेत्र में रोजगार की स्थिति में भारी तब्दीली आयी है. साल 2004-05 से 2011-12 के बीच निर्माण-कार्य का क्षेत्र रोजगार के विस्तार के लिहाज से प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरा. साल 2004-05 से 2011-12 के बीच निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार-प्राप्त लोगों में ग्रामीण पुरुषों की तादाद 3.4 प्रतिशत तथा ग्रामीण महिलाओं की तादाद 1.1 प्रतिशत बढ़ी.

 

--- निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार-प्राप्त ग्रामीण आबादी के बढ़ने की प्रमुख वजह रही रोजगार की तलाश में पलायन कर निकले लोगों का किसी अन्य क्षेत्र में रोजगार हासिल ना होना और अंतिम विकल्प के रुप में निर्माण-कार्य के क्षेत्र में गहन परिश्रम और सामाजिक सुरक्षा विहीन काम चुनना.

 

--- साल 2011-12 के बाद निर्माण-कार्य के क्षेत्र में उपलब्ध रोजगार में कमी आयी है. साल 2011-12 से 2017-18 के बीच निर्माण-कार्य के क्षेत्र में रोजगार प्राप्त लोगों की तादाद में ग्रामीण पुरुषों की संख्या 0.4 प्रतिशत बढ़ी है जबकि ग्रामीण महिलाओं की तादाद में 0.7 प्रतिशत की कमी आयी है.

 

--- दिहाड़ी कामगारों के एतबार से देखें तो ग्रामीण और शहरी तथा स्त्री और पुरुष सरीखे तमाम कामगार-वर्गों के लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं. रोजगार के अवसरों में कुल 3 प्रतिशत की कमी आयी है.

 

---- स्वरोजगार प्राप्त लोगों की संख्या में भी कमी के रुझान हैं. साल 2011-12 में स्वरोजगार प्राप्त लोगों की तादाद 20.2 प्रतिशत थी जो साल 2017-18 में घटकर 18.1 प्रतिशत हो गई.

 

(तस्वीर में इस्तेमाल की गई पोस्ट साभार www.dw.com पर प्रकाशित खबर बीते 45 सालों में बेरोज
ारी दर सबसे ज्यादा
 से



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