वायु प्रदूषण को रोकने के लिए फसल चक्र बदलने की जरूरत

वायु प्रदूषण को रोकने के लिए फसल चक्र बदलने की जरूरत

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published Published on Dec 4, 2019   modified Modified on Dec 4, 2019
 
हाल के समय में उत्तर भारत और विशेषकर दिल्ली एनसीआर वायु प्रदूषण की चपेट में है। अक्टूबर-नवंबर में हवा की गुणवत्ता न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई है। मीडिया रिपोर्टों में इसका बड़ा कारण पराली ( धान फसल के ठंडल) जलाना बताया गया है, और इससे दिल्ली और आसपास के लोगों के स्वास्थ्य पर खासा प्रभाव पड़ रहा है। सिस्टम आफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फारकास्टिंग एंड रिसर्च (SAFAR-India) की वेबसाइट पर  उपलब्ध ताजा आंकड़ों से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यह अध्ययन मिनिस्ट्री आफ अर्थ साइंस ( MoES) के अंतर्गत होता है।

सफर इंडिया ( SAFAR- India)  के आंकड़े बताते हैं कि बाहर से आने वाला धुआं जो पराली जलाने से बना है, उसका योगदान दिल्ली के वायुमंडल में पाए जाने वाली कुल पी.एम. 2.5 एकाग्रता में 28 अक्टूबर को 15 प्रतिशत रहा, जो 31 अक्टूबर तक 44 प्रतिशत पहुंचा। हालांकि पराली से बनने वाली पी.एम. 2.5 का दिल्ली के कुल पी.एम. 2.5 एकाग्रता में योगदान 2 नवंबर को 17 प्रतिशत था, यह 3 नवंबर को 25 प्रतिशत तक पहुंचा। 4 नवंबर को यह योगदान 14 प्रतिशत तक रहा। इसी से पता चलता है कि पराली के अलावा भी, वायुमंडल में पी.एम. 2.5 के दूसरे कारक हैं, जैसे निर्माण गतिविधियां, औद्योगिक प्रदूषण, थर्मल पावर प्लांट प्रदूषण और वाहनों का प्रदूषण इत्यादि।
 
सैटेलाइट चित्रों को देखने से पता चलता है कि वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 के आखिरी हफ्ते में आग की घटनाएं बढ़ी हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि किसानों को पराली जलाने से रोकने में सार्वजनिक नीतिंयां और नियम पूरी तरह नाकाम रहे हैं।

पराली जलाना क्यों जारी है?

पराली जलाने की घटनाएं हरित क्रांति वाले इलाकों में रही हैं क्योंकि यहां का किसान 40-50 सालों से गेहूं-धान के फसल चक्र में फंसा हुआ है। बहरहाल, पराली जलाने पर दो कानूनों का असर महसूस किया जा सकता है। एक है पंजाब प्रजरवेशन आफ सवसाइल वाटर एक्ट और हरियाणा प्रेजरवेशन आफ सबसाइल वाटर एक्ट 2009। इन दोनों कानूनों के परिणामस्वरूप धान रोपाई में देरी होती है जो मई-जून से जून-जुलाई तक बढ़ती है, ताकि मानसून की बारिश का किसान फायदा उठा सके।

जब एक बार धान रोपाई में देर होती है तो उसकी कटाई में भी देर होती है। और धान की फसल कटाई और गेहूं की बुआई के बीच बहुत कम समय (15-20 दिन मात्र) मिलता है। इन दो कानूनों के अलावा यह संयोग है कि इसी समय मनरेगा में विस्तार हुआ है, निर्माण सेक्टर बढ़ा है, और भारत के पूर्वी भाग में गैर कृषि कामों में मजदूरों की नियुक्ति हुई है।

नवंबर माह में गेहूं को बोने की जरूरत होती है, जब मिट्टी में सही नमी होती है। धान कटाई और गेहूं की बुआई के समय ग्रामीण इलाकों में मजदूरों की मांग बहुत होती है। पर ऐसे समय मजदूर नहीं मिलते। पूर्व में वे बिहार से पलायन कर आते थे, लेकिन जबसे मनरेगा का विस्तार हुआ है, निर्माण क्षेत्र में उछाल आया है, तबसे मजदूरों की कमी है। इसलिए, पंजाब और हरिय़ाणा के किसान हारवेस्टर से धान कटाई करवा रहे हैं, क्योंकि खेत मजदूरों में कमी आई है और मजदूरी बढ़ी है।

इंक्लूसिव मीडिया फार चेंज द्वारा तैयार 10 नवंबर, 2016 की एक न्यूज अलर्ट में धान कटाई के लिए कंबाइन हारवेस्टर की निर्भरता पर चर्चा हुई थी। एक अध्ययन में रिद्धिमा गुप्ता ने कंबाइन हारवेस्टर से कटाई, ठंडलों का फैलाव और नतीजतन फिर पराली जलाने के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए यह बताया था कि किसान पराली जलाते हैं क्योंकि इनका उपयोग मवेशियों को खिलाने में इस्तेमाल नहीं होता है। इसका एक और कारण है कि धान के ठंडलों के बीच गेहूं बुआई की मशीन कुछ दिनों पहले तक भी उपलब्ध नहीं थी।

हाल ही में पंजाब के कुछ हिस्सों में हैप्पी सीडर टेक्नोलाजी के जरिए गेहूं बुआई की जाती है, जो धान के ठंडलों के बीच में गेहूं बो देती है। इससे समय भी बचता है और नमी भी लंबे समय तक रहती है।

सुश्री गुप्ता ने अध्ययन में पाया कि हैप्पी सीडर टेक्नोलाजी से पराली जलाने की जरूरत नहीं होती। यह मशीन ठंडलों के बीच में ही गेहूं बोती है।

सुश्री गुप्ता ने साउथ एशिया नेटवर्क फार डेवलपमेंट  एंड एनवायरमेंट एकोनामिक्स (SANDEE) के तहत किये गए अध्ययन में  पाया कि हैप्पी सीडर टेक्नोलाजी को अपनाने की गति धीमी है क्योंकि इसके फायदे कम हैं।

यहां इसका उल्लेख करना उचित होगा कि बिना ठंडल (पुआल) प्रबंधन व्यवस्था के कंबाइन हारवेस्टर का उपयोग ठंडल छोड़ देता है। ताजा मीडिया रिपोर्ट बताती है कि रोटावेटर और हैप्पी सीडर जैसे उपकरण पराली जलाने को रोक सकती हैं।

उच्च लागत उपकरण, डीजल का संचालन खर्च और जलभराव को रोकना, किसानों के सामने  बड़ी  चुनौतियां है।

कुल मिलाकर, हैप्पी सीडर, सुपर स्ट्रा मैंनेजमेंट और अन्य उपकरणों को खरीदने में भारी सब्सिडी देने के बावजूद किसान इन्हें कम खरीद पा रहे हैं। क्योंकि सब्सिडी के बावजूद इन उपकरणों की कीमत ज्यादा है।

इसके बावजूद धान कटाई के अलावा पूरे साल इनका इस्तेमाल नहीं होता है। यह कहा जा सकता है कि कस्टम हायरिंग सेंटर और ग्राम स्तर पर फार्म मशीनरी बैंकों की बहुत कमी है।

अब क्या करना चाहिए?

वायु प्रदूषण को उत्तर भारत में कम करने के लिए विशेषकर अक्टूबर-नवंबर माह में कुछ कदम उठाए जा सकते हैं-

- अनाज भडारण व्यवस्था और सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के लिए मोटे अनाजों को लाभकारी मूल्यों पर खरीदा जाना चाहिए।
- लोगों को अपनी खान-पान की आदतों में बदलाव करना चाहिए, विशेषकर भोजन में मोटे अनाज व पौष्टिक अनाज शामिल करना चाहिए।
- पंजाब और हरियाणा में धान-गेहूं के अलावा फसल चक्र में विविधता लानी चाहिए।
- ऐसे सजावटी पौधों की खेती करनी चाहिए जिससे आय बढ़े। खासतौर से उन बड़े और अमीर किसानों के जो हरित क्रांति वाले राज्यों में रहते हैं।
- ज्यादा पानी खपत वाली फसलें जैसे - गन्ना, केला, धान की बजाए कम पानी वाले पौष्टिक अनाजों की फसलें लगानी चाहिए, जिसमें अच्छे दाम भी मिले।
- वेयर हाउस, भंडारण और प्रोसेसिंग की सुविधाएं बढ़नी चाहिए, जिससे फसलों की विविधता और ज्यादा उत्पादन को प्रोत्साहन मिले।
- कम पानी वाली नई किस्मों को विकसित करने और उन्हें कीटरोधी बनाने के लिए अनुसंधान होना चाहिए। किसान को बीजों की उपलब्धता उचित दामों में होना चाहिए।
     
References

Innovative viable solution to rice residue burning in rice-wheat cropping system through concurrent use of super straw management system-fitted combines and turbo happy seeder, National Academy of Agricultural Sciences (NAAS), Policy Brief No. 2, October, 2017, please click here to access 

Policy Brief - The key to resolving straw burning: Farmers' expertise, Maastricht University, 1 December, 2017, please click here to read

Happy Seeder: A solution to agricultural fires in north India -Ridhima Gupta & E Somanathan, Ideas for India, 12 November, 2016, please click here to access   

Trends in rural wage rates: Whether India reached Lewis Turning Point -A Amarender Reddy (2013), International Crops Research Institute for Semi-Arid Tropics (ICRISAT/ CGIAR), please click here to read
 
Causes of emissions from agricultural residue burning in North-West India: Evaluation of a Technology Policy Response by Ridhima Gupta, (ISI Delhi), Working Paper, No. 66–12, January 2012, South Asian Network for Development and Environmental Economics (SANDEE), please click here to access
 
Management of crop residues in the context of conservation agriculture (2012), Policy Paper no. 58, National Academy of Agricultural Sciences, December, please click here to access 

Which one is a better indicator for depicting the problem of joblessness -- Proportion Unemployed or Unemployment Rate? News alert by Inclusive Media for Change dated 20 June, 2019, please click here to access 
 
Govt.'s solution to end stubble burning is too costly for farmers, Inclusive Media for Change news alert, dated 17 November, 2017, please click here to access 

To breathe fresh air, Opt for better agricultural technology, Inclusive Media for Change news alert, dated 10 November, 2016, please click here to access   

Why is Delhi's air so toxic? -Srishti Choudhary, Livemint.com, 3 November, 2019, please click here to access 

Crop residue burning: Why Happy Seeder isn't a happy proposition -Anju Agnihotri Chaba, The Indian Express, 31 October, 2019, please click here to read more

Punjab's paddy dilemma -Jyotika Sood, Down to Earth, 15 July, 2014, please click here to read more      


Image Courtesy: Inclusive Media for Change/ Shambhu Ghatak
 

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