एक खोखला आश्वासन: कैसे मोदी सरकार ने वन संरक्षण से मोड़ लिया मुंह

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published Published on Sep 19, 2023   modified Modified on Sep 19, 2023

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव, 19 सितम्बर

नई दिल्ली: जुलाई 2017 में डॉ. हर्षवर्धन भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मामलों के केंद्रीय मंत्री हुआ करते थे। उस समय डाॅक्टर हर्षवर्धन ने संसद में आश्वासन दिया था," एक नई वन नीति का मसौदा तैयार किया जा रहा है और यह जल्द ही तैयार हो जाएगा"। मौजूदा वन नीति करीब 29 साल पुरानी हो चुकी थी। नई वन नीति का मकसद सभी तीन केंद्रीय वन कानूनों को एक साथ जोड़ना था। इन तीनों केंद्रीय वन कानूनों के नियमों और विनियमों में इस तरीके का बदलाव किया गया है कि मौजूदा वक्त में ये कानून जिस मकसद से बनाए गए थे, उससे अलग मकसद के लिए काम कर रहे हैं। यह तीनों केंद्रीय वन कानून उद्योगों के पक्ष में वन संरक्षण को कमजोर करते हैं।

मोदी सरकार वन नीति के वादे को आज तक पूरा नहीं कर पाई है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा समीक्षा किए गए रिकॉर्ड से पता चलता है कि एक जवाबदेह निगरानी के तौर पर काम करने वाली सरकारी आश्वासन से संबंधित संसदीय समिति ने संसद में दिए गए आश्वासन से बार-बार पीछे हटने की कोशिश करने के लिए और 5 साल में आश्वासन न पूरा कर पाने पर सरकार को फटकार लगाई। वन नीति के जिन मसौदों को साल 2016 और 2018 में जांच परख के लिए पेश किया गया था, वे आदिवासी लोगों और वनवासियों के अधिकारों की अनदेखी करने और जंगलों में कॉर्पोरेट को घुसने की सुविधा देने के लिए कड़ी आलोचना के घेरे में आ गए थे।
पूरी रपट- द रिपोर्टर्स कलेक्टिव


द रिपोर्टर्स कलेक्टिव, 19 सितम्बर https://www.reporters-collective.in/trc/van-sanrakshan-bhag-ek
 

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