बिहार में पीडीएस का हाल, मांगा अनाज, मिली जेल
-बीबीसी, बीती 7 जून को बिहार के अरवल के अनुमंडल कार्यालय में राशन कार्ड बनाने और उसका सत्यापन करवाने के लिए भीड़ उमड़ी थी. हज़ारों की इस भीड़ के लिए सरकारी 'सोशल डिस्टैंसिंग' की बात बेमानी थी. राशन कार्ड के लिए लाइन में सबा परवीन भी खड़ी थी. इस कोरोना कॉल में उनके लिए सरकारी खाद्यान्न सहायता अब जीने-मरने का सवाल बन चुकी है. जीने-मरने का ये सवाल सिर्फ़ अरवल जिले के लोगों के लिए ही नहीं है. बल्कि बिहार की एक बड़ी आबादी के लिए ये सवाल अहम है. इतना अहम कि अब लोग इसके लिए जेल भी जा रहे है. राज्य की राजधानी पटना से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर में 9 लोग इसी अनाज वितरण को लेकर जेल में हैं. अनाज मांगा, मिली जेल लेकिन 19 मई को प्रशासनिक अधिकारियों ने आकर उस अनाज को दूसरी जगह ले जाने की कोशिश की. जिसके बाद गांव ने पुलिस और ग्रामीणों के बीच में भिडंत हुई. जो बाद में पुलिस की लाठीचार्ज में तब्दील हो गया. अतरार गांव के रमाशंकर चौधरी बिहार सरकार के अनुसूचित जाति/ जनजाति अत्याचार निवारण पर्यवेक्षण समिति के सदस्य है. वो बताते है, "गांव में भूख से तीन लोगों की मौत हो चुकी है. तकरीबन 200 की संख्या में पुलिसकर्मी थे और उन लोगों ने बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं, बच्चों को पीटा और ग्रामीणों के मोबाइल तक छीनकर ले गई. अब पुलिस ने 9 लोगों को जेल भेज दिया है जिसमें नाबालिग भी है. हमने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बीडीओ को निलंबित करने, घटना की जांच और निर्दोषों को जेल से रिहा करने की मांग की है." वहीं औराई पंचायत के मुखिया पति आवेश पांडेय ने बीबीसी से कहा, "गांव वाले इसलिए जेल मे हैं क्योंकि कुछ लोगों ने अपने राजनीतिक फायदे के चलते प्रशासन के लोगों की हत्या का षड्यंत्र रचा. प्रशासन तो अनाज को व्यवस्थित कराने आय़ा था लेकिन लोगों ने ही रोड़े बाजी की." पीयूसीएल यानी पब्लिक यूनीयन ऑफ सिविल लिबर्टीज की तीन सदस्यीय टीम भी जांच के लिए अतरार गांव गई थी. टीम के सदस्य शाहिद कमाल के मुताबिक, "अतरार की स्थिति दयनीय है. वहां स्थानीय लोगों और मुखिया के बीच तनातनी के चलते अनाज नहीं बट पा रहा है. सरकार को चाहिए कि वहां संवेदनशील तरीके से हस्तक्षेप करके पीडीएस अनाज का वितरण सुनिश्चित करें." चोरी करने को मजबूर करती है सरकार बिहार की फेयर प्राइस डीलर्स एसोसिएशन के कार्यकारी अध्यक्ष वरुण कुमार सिंह कहते है कि सरकार ही पीडीएस दुकानदारों को चोरी करने को मजबूर कर रही है. उनके मुताबिक जन वितरण दुकानदार फिलहाल तीन मुख्य परेशानियां झेल रही है. पहला बॉयोमैट्रिक मशीन जिसमें लाभुक के अंगूठे का मिलान जरूरी है, दूसरा खाद्दान्न की माप तौल और तीसरा पीडीएस दुकानदारों का कमीशन. वरुण सिंह कहते है, "सरकार अनाज के कम वजन के नाम पर पीडीएस दुकानदारों का लाइसेंस कैंसिल करती रहती है जबकि सच्चाई ये है कि राज्य खाद्य निगम से ही कम अनाज मिलता है. इसके अलावा हम एक क्विंटल अनाज पर 70 रुपये कमीशन मिलता है. अब अगर एक दुकानदार के पास 400 कार्ड है तो उसकी कमाई का अंदाजा आप लगाइए. हमारी लंबे समय से मांग है कि हमें केरल की तर्ज पर 30 हजार रुपये का मानदेय मिले, लेकिन सरकार कुछ कर ही नहीं रही है. पीडीएस दुकानदार इस कमीशन से अपना बेसिक खर्चा भी नहीं निकाल पा रहे तो ऐसे में सरकार ही चोरी करने को मजबूर कर रही है." अंगूठा फेल तो राशन गोल रोहतास से दूर भोजपुर के फतेहपुर मठियां गांव की अंजू देवी की भी यहीं परेशानी झेल रही है. अंजू देवी के परिवार को मई माह का राशन नहीं मिला है. अंजू के पति कमलेश गिरी ने बताया, "डीलर श्यामजी पासवान ने कहा है कि फिंगर नहीं ले रहा है. कार्ड लॉक हो गया है. हम गरीब आदमी है, आंधी तूफान ने फसल भी खराब कर दी है. किसी तरह बाल बच्चा जिलाते है." जहां राशन कार्ड के लाभुक 'अंगूठा के फेल' होने से परेशान है वहीं पीडी एस दुकानदार भी ये परेशानी झेल रहे है. बांका जिले के पीडीएस डीलर्स के जिलाध्यक्ष सचिदानन्द तिवारी कहते है, "पहले सिर्फ डीलर का अंगूठा पॉस मशीन पर लगता था लेकिन अब लाभुक का भी लगना जरूरी है. इससे तो महामारी फैलने की आशंका है. हम लोग बार बार सरकार से अनुरोध कर चुके है कि इस व्यवस्था को हटाया जाए लेकिन पूरे लॉकडाउन के दौरान सरकार इसे कभी हटाती और कभी लागू करती रही है." दिलचस्प है कि खुद फेयर प्राइस डीलर्स एसोसिएशन ये मांग कर रही है कि जिन लाभुकों को अंगूठा मिलान नहीं होने के कारण अनाज नहीं मिल पा रहा है, उन्हें खाद्य आपूर्ति अधिकारी की मौजूदगी में अनाज दिया जाएं. पूरी रपट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. |
सीटू तिवारी, https://www.bbc.com/hindi/india-53026562
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