भुखमरी-एक आकलन

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फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) द्वारा प्रस्तुत द स्टेट ऑव फूड इनसिक्यूरिटी इन द वर्ल्ड-२००८ नामक दस्तावेज के अनुसार-  ftp://ftp.fao.org/docrep/fao/011/i0291e/i0291e02.pdf

·         दुनिया में भुखमरी से पीडित लोगों की संख्या बढ़ रही है। वर्ल्ड फूड समिट का लक्ष्य है कि विश्व में भुखमरी से पीडित लोगों की संख्या को साल २०१५ तक कम करके आधा कर देना है लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करना कई देशों के लिए कठिन होता जा रहा है। एफएओ का हालिया आकलन कहता है कि साल २००७ में विश्व में भुखमरी से पीडि़त लोगों की तादाद ९२ करोड़ ३० लाख थी और साल १९९०-९२ की मुकाबले भुखमरी से पीडित लोगों की संख्या में ८ करोड़ लोगों का इजाफा हुआ है। .

 

·         भुखमरी के बढ़ने का एक बड़ा कारण खाद्य सामग्री की कीमतों का बढ़ना है। भुखमरी से पीडित लोगों की संख्या में सर्वाधिक तेज गति से बढोत्तरी साल २००३-०५ से २००७ के बीच हुई। एफएओ के आकलन के मुताबिक साल २००३-०५ में जितने लोग भुखमरी से पीडि़त थे उनकी संख्या में साल २००७ में साढे सात करोड़ का इजाफा हुआ। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें लोगों को आहार असुरक्षा की स्थिति में ढकेल रही हैं। जो पहले से आहार असुरक्षा के दुष्चक्र में हैं उनकी स्थिति और दयनीय हो रही है।

 

·         निर्धनतम,भूमिहीन और जीविकोपार्जन के लिए महिलाओं पर आश्रित परिवारों पर सबसे ज्यादा चोट पड़ी है।विकासशील देशों में शहरी और ग्रामीण इलाके के अधिसंख्य परिवार अपने भोजन सामग्री के लिए खरीदारी पर निर्भर हैं। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से लोगों की वास्तविक आमदनी में कमी आयी है ।नतीजतन भोजन की मात्रा तथा उसकी गुणवत्ता में कमी आने से गरीबों में कुपोषण बढ़ा है।

 

·         खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए सरकारों ने जो शुरूआती प्रयास किये वे असफल रहे हैं। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के नकारात्मक असर को रोकने के लिए सरकारों वने कई उपाय किये। मिसाल के लिए कीमतों पर नियंत्रण की कोशिशें की गईं और निर्यात पर अंकुश लगाया गया। सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से ऐसे त्वरित उपाय करना लाजिमी था लेकिन ये सारे प्रयास अस्थायी तौर पर किए गए और बहुत संभव है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में हो रही लगातार बढ़ोत्तरी के मद्देनजर ये प्रयास कारगर ना सिद्ध हों।

 

·         भारत और चीन का आकार बड़ा है। यहां विश्व के सर्वाधिक लोग निवास करते हैं और ठीक इसी कारण भारत और चीन को एक साथ मिला दें तो इन दो देशों में विकासशील देशों में मौजूद भुखमरी से पीड़ित लोगों की कुल संख्या के ४२ फीसदी लोग रहते हैं।

 

·         साल १९९०-९२ और फिर १९९० के दशक के मध्यवर्ती सालों में भारत में भुखमरी से पीड़ित लोगों की संख्या में कमी आयी लेकिन १९९५-९७ के बाद ये सिलसिला रुक गया। चूंकि भारत में भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद कुल जनसंख्या में २१ फीसदी है इसलिए इनकी संख्या में तेजी से कमी लाना अपने आप में बहुत मुश्किल चुनौती है।

 

·         साल १९९५-९७ के बाद भारत में प्रति व्यक्ति-प्रतिदिन आहार-ऊर्जा की आपूर्ति में कमी आयी। इससे जनसंख्या में कुपोषण से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ी। जहां तक प्रति व्यक्ति-प्रतिदिन आहार-ऊर्जा में मांग की बढ़ोत्तरी का सवाल है, भारत में लाइफ एक्सपेक्टेन्सी (जीवनधारिता) १९९०-९२ से ५९ साल से बढ़कर ६३ साल हो गई है। इससे जनसंख्या की बनावट में बुनियादी बदलाव आये हैं और आहार उर्जा की आपूर्ति की अपेक्षा उसकी मांग की गति बढ़ गई है।

 

·         १९९० के दशक मध्यवर्ती सालों से भारत में प्रति व्यक्ति-प्रतिदिन आहार ऊर्जा की आपूर्ति में कमी आयी तो दूसरी तरफ इसकी मांग में बढ़ोत्तरी हुई। नतीजतन भारत में साल २००३-०५ में आहार की कमी से पीड़ित लोगों की संख्या में लगभग ढाई करोड़ का इजाफा हुआ। बुजुर्गों की बढ़ी हुई तादाद से प्रतिवर्ष लगभग ६५ लाख टन अतिरिक्त आहार की जरुरत बढ़ी।बहरहाल, प्रतिशत के हिसाब से देखें तो साल १९९०-९२ में भारत में भुखमरी २४ फीसदी थी जो २००३-०५ में घटकर २१ फीसदी हो गई। इससे संकेत मिलते हैं कि भारत मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स को पूरा करने की दिशा में प्रगति कर रहा है।


 

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